केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार को अमेरिका के मैरीलैंड स्थित जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय अधिकारियों के साथ भारत में अपना परिसर स्थापित करने के बारे में चर्चा की है।
यह कदम भारत में शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस बैठक के दौरान विश्वविद्यालय के साथ शैक्षणिक और रिसर्च जगत में भारत के साथ सहयोग पर भी चर्चा की गई।
शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “बैठक के दौरान उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा व्यक्त की गई गहरी रुचि को देखते हुए सरकार को बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम मिलने की उम्मीद है।”
मामले से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि डुअल और संयुक्त डिग्री कार्यक्रमों, छात्रों और शिक्षकों की रुचि और डेटा साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और भविष्य की प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में रिसर्च साझेदारी के क्षेत्रों में भी चर्चा हुई।
अमेरिका से भारत आए हुए शीर्ष वैश्विक संस्थानों का यह अब तक का सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल है। इसका नेतृत्व जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष रोनाल्ड जे डेनियल कर रहे हैं।
इसमें गुप्ता क्लिंस्की इंडिया इंस्टीट्यूट के अधिकारी भी शामिल थे जो यूनिवर्सिटी की एक इकाई है और यह अनुसंधान, शिक्षा और नीति के माध्यम से यूनिवर्सिटी को भारतीय साझेदारों के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है।
बैठक मेंधर्मेंद्र प्रधान ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NE) के लक्ष्यों पर भी चर्चा की।
गौरतलब है कि JHU को वैश्विक स्तर पर शीर्ष विश्वविद्यालयों में स्थान दिया जाता है। यह अनुसंधान, चिकित्सा और शिक्षा में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में अपने अग्रणी कार्य के लिए जाना जाता है। 1876 में अपनी स्थापना के बाद से यह विश्वभर में अग्रणी रहा है।
QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग और टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) जैसी हालिया वैश्विक रैंकिंग में JHU अक्सर दुनिया भर के शीर्ष 15 से 20 संस्थानों में स्थान पाता है।
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के दुनिया भर में सिर्फ 10 परिसर हैं जिनमें से दो अमेरिका से बाहर हैं।
यूनिवर्सिटी ने बोलोग्ना, इटली में जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज (SAIS) यूरोप परिसर और नानजिंग, चीन में हॉपकिंस-नानजिंग केंद्र खोला है।